राधा
राधा
काश मेरी भी प्रेम कहानी वृंदावन सी पावन हो जाए,
जहां मै बनूं कान्हा बंसीवाला और तू मेरी राधा बन जाए।
है धरती सूखी प्रेम की जहां प्रेम वसंत का है रूठ रहा,
तपस बढ़ी व्याकुलता की ,हाथ से हाथ है छूट रहा,
काश इस बंजर धरती पर इन्द्रधनुष प्रेम का बन जाए,
और छूटे बाण प्रेम के जब तू मुझसे मिलन आये।
नीर बिना जलाशय सूखी है, हृदय प्रेम की भूखी है,
बंसी की है अब तान नहीं,गायें भी वृंदावन की रूठी हैं,
काश राधा भी आज थोड़ी सी ज़िद्दी हो जाए,
रोके श्याम को मथुरा जाने से ऐसी कोई युक्ति बन जाए।
छल पूर्वक हो बल पूर्वक हो लेकिन कुछ तो हो जाए
हे काल बताओ कैसे कान्हा को कृष्ण बनने से रोका जाए
कर्मयोग में बंधा है कान्हा, राधा ये है जान रही
वृंदावन का मथुरा हो जाना, वो सब है पहचान रही,
प्रेम वियोग राधा की अब ना कोई छोटी बात रही,
रही दूर वो कृष्ण से जितना उतना ही कान्हा के पास रही,
प्रेम अमर हुआ वहीं जो प्रेम पाश ना ला पाए,
त्रेता में राम सीता को रोक ना पाए
द्वापर में कृष्ण राधा ना मिल पाए,
काश मेरा कलयुग भी त्रेता और द्वापर हो जाए
जो मिल ना पाए तुमसे तो कोई बात नहीं
पर मैं कृष्ण तेरा और तू मेरी राधा हो जाए।
