राधा कृष्ण।
राधा कृष्ण।
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कुंज की गली गली में प्रेम का निशान है ,
राधिका है बांसुरी तो होंठ स्वयं श्याम हैं । ।
धूप सी खिली कभी कभी वो शाम हो गई
नाम का मिटा भरम तो खुद अनाम हो गई
प्रेम की व्यथा कथा, कथा ये आम हो गई
राधिका विरह में जलके स्वयं श्याम हो गई
कृष्ण हैं जो प्रेम तो राधिका प्रमाण हैं
राधिका हैं बांसुरी तो होंठ स्वयं श्याम है ।।
एक दीप बन धर्म की राह में चला सदा
एक बाती बन लगन की आग में जला
सदा बूंद बूंद नेह का स्वांस में पला
सदा स्वयं को ही पा लिया जो
प्रेम में ढला सदा भक्ति है
आरंभ किन्तु प्रेम हीं विश्राम है राधिका है
बासुरी तो होंठ स्वयं श्याम हैं ।।
कुंज की गली गली में प्रेम का निशान है
राधिका है बांसुरी तो होंठ स्वयं श्याम हैं ।।