पुराना गुलाब
पुराना गुलाब
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कमरा है वो ऊपरवाला,
कोना उसमे अंधेरेवाला।
अलमारी है टूटी थोड़ी,
उसमे खत था उसकेवाला।
कभी न आता अब मैं ऊपर,
न जाने क्यों आया कमरे भीतर।
टटोलते हुए पुरानी किताब,
निकल आया सुखा गुलाब , ऊपर।
ज़माने बाद आया उसका ख्याल,
हटाया करते थे माथे से उसके बाल।
मोहल्ला करता था बाते हमारी,
उसकी अदाएं करती थी बवाल।
अब है खुश वो अपने घर,
हम न मिले अरसे से मगर,
यूं कभी याद जब आती उसकी,
घूम आता हूं उसका दर।