पर्यावरण और प्रकृति
पर्यावरण और प्रकृति
कब तक अपने जीवन को हम
'उन्नत' करते जायेंगे !
भूल वृक्ष की मंद बयार
छांव घनी और लाभ अपार
उसके तन पर कर प्रहार
उसका अस्तित्व मिटायेंगे !
हम छाँव कहाँ से पाएंगे !
माँ बन जिसने पल पल सींचा
उन्नति का स्वार्थ गान सुनाकर
सड़कों,भवनों से चुनवाकर
उस माता के वक्षस्थल को
कब तक रौंदे जाएंगे !
हम कब तक रौंदते जाएंगे !
हर घर दफ़्तर और वाहन में
अब A/C कल्चर बसते हैं
सूर्यदेव को कोस के अपने
मन को शीतल करते हैं
माँ धरा का दोहन करके
सुख कैसे हम पायेंगे !
हम खुश कैसे रह पाएंगे !
है यही दस्तूर धरा का
जो है दिया वो पाएंगे,
अश्रु भरा है आँचल 'माँ' का
वजह यही है कि अब प्रतिपल
अश्रु नैन बहाएंगे !
बोया पेड़ बबूल का तो
आम कहाँ से पाएंगे
हम आम कहाँ से पाएंगे !
हम खुश कैसे रह पाएंगे !!!
