रिश्ता
रिश्ता
मुझे तो अभी भी
चमकता दिखाई देता है
आईने सा....
अब 'तुम' देखो तो !
कुछ गर्द जम गई होगी
लापरवाही की....
पुराना जो है ! छुओ....
ज़रा सा सहला दो तो
खिल उठेगा पहले सा....
मुस्कुुुराता हुआ...
'रिश्ता ही तो है !' तुम भी न.... !
खामख़्वाह वक़्त ज़ाया करते हो
नया तलाशने में.....
