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Inderjeet kaur

Abstract

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Inderjeet kaur

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रिश्ता

रिश्ता

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मुझे तो अभी भी

चमकता दिखाई देता है

आईने सा....

अब 'तुम' देखो तो ! 

कुछ गर्द जम गई होगी 

लापरवाही की....

पुराना जो है ! छुओ....

ज़रा सा सहला दो तो

खिल उठेगा पहले सा....

मुस्कुुुराता हुआ...

'रिश्ता ही तो है !' तुम भी न.... ! 

खामख़्वाह वक़्त ज़ाया करते हो 

नया तलाशने में.....


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