STORYMIRROR

वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Abstract

4  

वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Abstract

परिवार

परिवार

1 min
232

 मैं गाँव में जन्मा, गाँव में हुआ बड़ा,

गाँव में ही पला, मैं गाँव में ही पढ़ा,

रोजगार की चाहत में, मैं चल पड़ा,

क्या रखा हैं गाँव में, ये सोच में पड़ा,


शहर की तरफ मैं जो निकल पड़ा,

शहर की चकाचौंध रोशनी चक्कर में पड़ा,

शहर की दिखावे की जिंदगी मैं जीते चला,

धीरे-धीरे गाँव की माटी को मैं भूलता चला,

गाँव की माटी की वो भीनी-भीनी सुगंध,


गाँव के चौहरे की वो चौपाल,

गाँव की वो लह-लहाति फसलें,

सुख-दुःख में साथ निभाने की 

सब कुछ मैं चुका था मैं भूल,


पर छाई ऐसी बवा, तब आई गाँव की याद,

शहर ने नक्कारा, तब गाँव ने अपनाया,

महामारी ने ऐसा भगाया,

तब पुरखों की दी हुई झोपड़ियां ही 

काम आई


शहर ने भगाया, तब गाँव की माटी ने अपनाया !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract