पिता- अतुल्य
पिता- अतुल्य


वो जो हारता है,
मुझे जिताने के लिए।
बदसत्तूर लड़ता है, जमाने से,
मेरी ज़रूरतों के लिए।
कभी रोता है अकेले में,
ग़म छुपाने के लिए।
खाली जेबों को खंगालता है,
घर चलाने के लिए।
चल पड़ता है रोज़,
चंद ख़ुशियाँ कमाने के लिए।
सलाम है "तुझे" मेरे ख़ुदा
मुझे ये दुनिया दिखाने के लिए।