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Ravi kant chauhan

Abstract

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Ravi kant chauhan

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फिर बरसात होगी

फिर बरसात होगी

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फिर फूल खिलेंगे फिर चांदनी रात होगी

पतझड़ बीतेगा कल फिर बरसात होगी 


सुनाई देंगी किलकारियां पंछी फिर गाएंगे

मुरझाए हुए ये चेहरे फिर से मुस्कुराएंगे 


टूटेगी ये बेड़िया हम फिर आजाद होंगे

अपने पराए फिर एक दूसरे के पास होंगे 


प्रार्थना और धैर्य अपना रंग दिखलायेंगी

चचा अजान करेंगे माँ भी मंदिर जायेगी  


अमावस है आज और अंधेरी रात होगी

पतझड़ बीतेगा कल फिर बरसात होगी।


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