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Nalini Raval

Abstract

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Nalini Raval

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फागुन

फागुन

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वो तेरा नाम था

धड़कन बन धड़का जो,

सीसा बन पिघलता रहा रगों में,

सांसें बन जीवित होने का

एहसास रच बस जाता था

जो वो तेरा नाम था।


भोर की अरुणिमा सा,

सांझ की संध्या सा,

रात के रतजगों सा,


सर से पांव तक बिजली सा

कौंध जाता था जो,

वो तेरा नाम था।

भोर की भैरवी सा ,

मंदिर में केदार सा,

अग्नि में दीपक सा,

बरखा में मल्हार सा


रग-रग में बज जाता था जो,

वो तेरा नाम था।

मन में स्वयंवर सा,

होठों पर प्रथम चुंबन सा,

विवाह में यज्ञवेदी सा,


अंत में चिता की लपटों से

आकारित उठ जाता था जो

वोते नाम था

वो तेरा नाम था


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