नया सवेरा
नया सवेरा
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आसमान है कितना बड़ा, इसका अनुमान लगाऊँ मैं
खुद में छिपी विशालता को, पर पहचान ना पाऊ मैं ।
रंग बिरंगी दुनिया की, खुशबू को गले लगाऊँ मैं
मन की मनमोहक सुंदरता, अनदेखी कर जाऊँ मैं ।
जगत के इस झूठे श्रृंगार में, मोहित होता जाऊँ मैं
भीतर के इस वात्सलय को, कभी समझ ना पाऊ मैं ।
डूबा सूरज, अंधकार, जब छाया इस संसार में
आँखे खोल डरता रहा मैं, माया के इस व्यवहार में ।
नैन मूंद जब खोजने निकला, अपने मन का नया बसेरा
खुली आंख जब अंतर्मन की, खुद में पाया नया सवेरा ।