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Pallavi Agarwal

Abstract

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Pallavi Agarwal

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नायाब रिश्ता(वक़्त के पड़ाव पर)

नायाब रिश्ता(वक़्त के पड़ाव पर)

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नरम मुलायम हाथो की लकीरों को

अपने हाथों की लकीरों सेे मिला लेने वाला।।


बस हवा के हल्के से झोंके के साथ

बह जानेे को तैैयार।।

कभी ग्रीष्म ऋतु की सी झुलस।।


कभी शीत ऋतु की सी अहा।।


कभी बसंंत ऋतु की फुआरोंं का

आँखों से बह जाना और कभी बेेवजह मन मेंं उमड़ जाना।।


वक्त के थपेड़ों को पार करतेे करते नरम हाथोंं की

लकीरोंं का कपकपातें हाथों मेंं आकर मानो गड़ जाना।।


मानो कुम्हार के चाक से पका हुआ हुआ रिश्ता।।

उस खुदा की रोशनींं मे पलने वाला।।

नायाब बेहद नायाब।।


हवाँ केे झोंके के साथ बह जाने को नही 

बल्कि नृत्य करने को तैयार।।


ग्रीष्म ऋतु की झुलस से 

भी शीत लेंने वाला।।


हर रिश्ते को अपने अन्दर

समाँ लेेने वाला।।


उम्दा बेहद उम्दा 

नायाब बेहद नायाब रिश्ता

वक़्त केे उस पड़ाव पर।।


हाँ बक्त के बस उस ही 

पड़ाव पर।।



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