नारी हूं मैं
नारी हूं मैं
नारी हूं जानती हूं ये
कमजोर नहीं, ये मानती हूं मैं
पत्थर को तोड़ सकने की,
ताकत है मुझ में
पर्वत पर छलांग लगाने की,
रेत पर दौर जाने का साहस है मुझ में,
थक कर फिर चलने का,
गिर के फिर उठने की
हिम्मत है मुझ में
चाहूं वो पिघल जाए मोम की तरह
चाहूं वो बन जाऊँ चट्टान की तरह
इस बात का यकीन है मुझे
चाहूं तो छू लूं आकाश की ऊँचाइयों को
चाहूं तो नाप लूं सागर की गहराईयों को
इस बात का भरोसा है मुझ में
जब चाहे आज़मा लो,
कितना संवत है मुझ में
तैयार हूं हर वक्त उस पल के लिए
नारी हूं ये जानती हूं
कमजोर नहीं ये मानती हूं मैं।
