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Dr. Akansha Rupa chachra

Classics

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Dr. Akansha Rupa chachra

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मुस्कान

मुस्कान

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सृष्टि रची ईश्वर ने ऐसी 

सभी और मुस्कुराहट हो फूलों सी,

भांति भांति के खुशबू जैसी

एक दूजे  बिन अधूरे हैं जैसे,

मुस्कान तो वह खुशबू है 

रीझ जाएं सभी उससे

हे प्रिय बांटते रहो तुम मधुर मुस्कान।


 जीवन को जीना हो गर खुशियों से

 रिश्तो को तुम को संभालना सीखो

 मतभेद हो जितना भी

 मनभेद कभी ना होने पाए

 बांटते रहो मधुर मुस्कान तुम।


 मुस्कान के सहारे मुश्किलें

 बहुत सी हल हो जाती

 बड़े-बड़े झगड़ों का अंत कर जाती 

परायों को भी अपना बनाती

 जीवन में खुशियां भर लातीं

 तो हे मानव बांटते रहो मधुर मुस्कान तुम।

 

इंसान तो क्या पशु-पक्षी भी

 समझते मुस्कान की भाषा

 गैरों को भी अपना बनाती

 यह मधुर मुस्कान की भाषा

 बड़ी बड़ी मुश्किलों से 

लड़ने की ताकत दे जाती 

यह मुस्कान की भाषा

गैरों में भी अपनापन भर जाती 

यह मुस्कान की भाषा

तो प्यारे बांटते रहो मधुर मुस्कान तुम। 


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