मर्दानी
मर्दानी
मैं मर्दानी हूं मत समझना मुझे तुम लक्ष्मीबाईं
जिसने बुंदेलो संग लड़ी थी लड़ाई
मैं छुईमुई सा पौधा थी, आह !
जीवन रुपी सागर में गिर गई थी।
डूब रही थी, लड़ रही थी, बीच गहन में फस गई थी
ऊंची उठती लहरों ने मुझे किनारे पर पटक दिया
तेज चल रही हवा ने पत्ते सा मुझको कुचल दिया
घबरा गई थी , तिलमिला गई थी
जाने कहां से हिम्मत आ गई थी
फौलाद सी बन चुकी थी मैं अब
हर तुफान से टकरा जाती हूं,
हां, मैं खुद को मर्दानी कह पाती हूं
मर्दानी होना मेरा ये भी रब की मर्जी है
हर कोई यहां मर्दानी है ,हर कोई यहां मर्दाना है
मैं भी, तुम भी, ये भी, वो भी
तुम्हें केवल सोई हुई आत्मिक शक्ति को जगाना है।
