मन का दिया
मन का दिया
सवेरे सवेरे सूरज और सांझ ढलते ही चाँद सितारे ,
प्रकृति ने जला रखे हैं देखो दिए कितने प्यारे प्यारे।
निराशाओं ने भर रखे हों ग़म के सागर खारे खारे ,
आशा की इक बूँद ओस सी बरसाए मीठे फ़व्वारे।
कल कल बहती नदिया झरने साक्षी हैं ये अजब नज़ारे ,
धरती अम्बर सूरज बरखा यकसां हैं ये हम पर सारे।
अंतर्मन के अंधियारे को जल्दी तू भी दूर भगा रे ,
आहूति अहम् की देकर मानव मन का दिया जला रे।
