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AkshRahi world विजयसुत

Inspirational

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AkshRahi world विजयसुत

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महात्मा

महात्मा

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एक मशाल बुझ तो गई

मगर क्षितिज पर सूरज निकल आया था..

अंधेरे में राह तो दिखाई उसने

उजाले में घना अंधेरा छाया था..

वो बुझ तो गई

फिर भी सुलगती रही..

बारुद सीने में लेकर

वो मुस्कुराती रही..

जब जब उठेंगे नापाक हाथ

अस्तित्व उसका मिटाने.,

तब तब शोला बन दहकेगी

जीवित मनुष्य के विचारों मे..

वो ना उसको मिटा सका

इतिहास न बापू तुम्हें भुला सका..

उसने तो रोक लिया उसको

विचारोंको उसके थाम न सका

जंजीरो में बांध न सका..



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