मेरे अरमान
मेरे अरमान
1 min
295
आज मैंने अपने अरमान
एक कागज पर उतारे,
उस कलम से लिखे जिसकी
स्याही थे मेरे आंसू,
ये वो अरमान थे जिनमें
थी कुछ चाह, था कुछ डर,
जो एक बार नहीं,
बार बार नहीं, कई बार नहीं,
हजार बार तड़पता था
क्या पता था ये डर भी कभी सच होगा
कभी वो होगा जो सोचा ना था
मेरे ख्वाब तो आसमान की तरह साफ थे,
जो हमें पनाह देता है
पर मुझे पनाह देने वाले तो
सिर्फ मेरे अरमान थे
कितनी मुश्किल से बनाया था ये आशियां
इस परिंदे ने
वो तूफ़ान क्या जाने ?
जो एक पल में ही मेरी पनाह तोड़ गया,
मुझे बेपनाह कर गया
साथ ही टूटी मेरी चाह, पर वो डर भी
लेकिन एक सीख दे गई,
कि ख्वाब तो होते ही टूटने के लिए
बस अब इन्हे देखना भी छोड़ दिया और
छोड़ दिया इनकी ख्वाइश करना
पर हकीकत देखना अपना लिया
क्यूंकि अब दोबारा बेपनाह
होने की हिम्मत नहीं मुझ में।