मेरे अरमान
मेरे अरमान
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आज मैंने अपने अरमान
एक कागज पर उतारे,
उस कलम से लिखे जिसकी
स्याही थे मेरे आंसू
ये वो अरमान थे जिनमें
थी कुछ चाह, था कुछ डर
जो एक बार नहीं, बार बार नहीं, कई बार नहीं,
हजार बार तड़पता।
क्या पता था कि ये डर कभी हकीकत बनेगा
मेरे ख्वाब तो आसमान की तरफ साफ़ थे।
जिसकी पनाह में हम सांस लेते है।
मेरे ख्वाब भी मेरी पनाह थे।
कितनी मुश्किल से बनाया था ये आशियां
वो तूफ़ान क्या जाने ?
जो एक पल में ही मेरी पनाह तोड़ गया
साथ ही टूटी मेरी चाह पर वो डर भी।
पर एक सीख दे गई।
कि ख्वाब तो होते ही टूटने के लिए
इन्हें देखना भी छोड़ दिया।
और इससे ज्यादा उनको पाने की ख्वाहिश को।
पर हकीकत देखना अपना लिया।
क्यूंकि अब दोबारा बेपनाह होने की हिम्मत नहीं होती।