मेरे 20 सर्वश्रेष्ठ दोहे
मेरे 20 सर्वश्रेष्ठ दोहे
ग़ज़ल कहूँ तो मैं ‘असद’, मुझमे बसते ‘मीर’
दोहा जब कहने लगूँ, मुझमे संत ‘कबीर’।
युग बदले, राजा गए, गए अनेकों वीर
अजर-अमर है आज भी, लेकिन संत कबीर।
ध्वज वाहक मैं शब्द का, हरूँ हिया की पीर
ऊँचे सुर में गा रहा, मुझमे संत कबीर।
काँधे पर बेताल-सा, बोझ उठाये रोज़
प्रश्नोत्तर से जूझते, नए अर्थ तू खोज।
विक्रम तेरे सामने, वक़्त बना बेताल
प्रश्नोत्तर के द्वन्द्व में, जीवन हुआ निढाल।
विक्रम-विक्रम बोलते, मज़ा लेत बेताल
काँधे पर लाधे हुए, बदल गए सुरताल।
एक दिवस बेताल पर, होगी मेरी जीत
विक्रम की यह सोचते, उम्र गई है बीत।
महानगर ने खा लिए, रिश्ते-नाते ख़ास
सबके दिल में नक़्श हैं, दर्द भरे अहसास।
रेखाओं को लाँघकर, बच्चे खेलें खेल
बटवारे को तोड़ती, छुक-छुक करती रेल।
मन्थन, चिन्तन ही रहा, निरन्तर महायुद्ध
दुविधा में वह पार्थ थे, या सन्यासी बुद्ध।
सच को आप छिपाइए, यही बाज़ारवाद
नैतिकता को त्यागकर, हो जाओ आबाद।
वहाँ न कुछ भी शेष है, जहाँ गया इंसान
पृथ्वी पर संकट बना, प्रगतिशील विज्ञान।
चुप्पी ओढ़ी शाम ने, कर्फ़्यू बना नसीब
दस्तक देती गोलियाँ, लगती मौत करीब।
कितने मारे ठण्ड ने, मेरे शम्भूनाथ
उत्तर सभ्य समाज से, पूछ रहा फुटपाथ।
गीता मै श्री कृष्ण ने, कही बात गंभीर
औरों से दुनिया लड़े, लड़े स्वयं से वीर।
हथियारों की होड़ से, विश्व हुआ भयभीत
रोज़ परीक्षण गा रहे, बरबादी के गीत।
महंगी रोटी-दाल है, मुखिया तुझे सलाम
पूछे कौन ग़रीब को, इज्ज़त भी नीलाम।
महंगाई प्रतिपल बढे, कैसे हों हम तृप्त
कलयुग का अहसास है, भूख-प्यास में लिप्त।
सबका खेवनहार है, एक वही मल्लाह
हिंदी में भगवान है, अरबी में अल्लाह।
होता आया है यही, अचरज की क्या बात
सच की ख़ातिर आज भी, ज़हर पिए सुकरात।