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Bhagirath Parihar

Abstract

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Bhagirath Parihar

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मेरा होना

मेरा होना

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उसने उतारा अपना दिमाग

रख दिया अलमारी के अन्दर

रख दी

उसने अपनी सभी लिखी पुस्तकें

अलमारी के अन्दर

सारे संबंधो को

उनकी तस्वीरों के साथ


कहा- यहीं पड़ी रहो

इसी अलमारी के अन्दर

अपनी तमाम प्रेम कहानियाँ और प्रेमपत्र

धर दिए अलमारी के अन्दर

अपेक्षाएँ, आकांक्षाएँ और

आशंकाएँ भी पटक दी अलमारी के अन्दर


कब तक ढोऊन्गा और ढोता रहूँगा

तो झाड़ ही दिया इन्हें

अपने बदन से धूल की तरह

फिर कर दी अलमारी बंद

स्वतन्त्र और बिन्दास हो,

करने लगा नाच बिना अनुशासन

उल्लसित होकर


फिर भी अलमारी में बंद चीजें

करने लगी उसे परेशान

तो वह तेजी से नाचा इतना कि स्वयं नृत्य बन गया

उसे अपने होने का भान भी नहीं रहा

कुछ होना कितना परेशान कर देता है


मात्र होना पर्याप्त है

जैसे पेड़, पहाड और नदी।


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