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Sushil Kumar Bhardwaj

Abstract

5.0  

Sushil Kumar Bhardwaj

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मैंने आह्वान किया था पागल बनने

मैंने आह्वान किया था पागल बनने

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नहीं मानता तूझे अपना प्रधान,

नहीं मानता मैं तेरा फरमान।

तू कहेगा पूरब जिसे,

पश्चिम कहूँगा मैं उसे।


तू करेगा स्वच्छता की बात,

मैं करूँगा गंदगी की बात।

तू पूजेगा राम को,

मैं पूजूँगा रावण को।


तू कहेगा प्रगति की बात,

मैं करूँगा जड़त्व की बात।

तू कहेगा अनुशासन की बात,

मैं करूँगा अभिव्यक्ति की बात।


तू कहेगा कुऐं में मत कूद,

मैं कहूँगा जल्दी से कूद।

तू पूजता है गोडसे को,

मैं पूजता हूँ गाँधी को।


तू कहेगा अहिंसा ही धर्म है,

मैं कहूँगा देश को जलाना ही कर्म है।

बस इतना समझ ले तू,

आजीवन का मेरा वैर है तू।


जिस दिन तू कहेगा जिंदा रहने को,

उस दिन कहूँगा खुद को

जिंदा जलाने को।

तू कहेगा इंसान बनने को,


मैं आह्वान करूँगा

हैवान बनने को।

क्योंकि तूने कहा पागल

नहीं बनने को,


इसलिए मैंने आह्वान किया था

पागल बनने को।


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