मैं
मैं
मैं महान हूँ मैं पतित हूँ,
मैं भविष्य हूँ, मैं अतीत हूँ।
रणवीर हूँ मैं, रणछोड़ हूँ मैं,
जोड़ हूँ मैं, तोड़ हूँ मैं।
मैं शुन्य हूँ, मैं अंत भी।
मैं दास हूँ, मैं महंत भी।
मैं अलंकार हूँ, मैं आलाप हूँ,
मैं उपहास हूँ, मैं प्रलाप हूँ।
मैं निर्मोही हूँ, मैं अभिलाषी भी,
मैं शीतल हूँ, मैं बासी भी।
मैं भक्त हूँ, भगवान हूँ मैं,
सर्वज्ञाता मगर अनजान हूँ मैं,
मैं सत्य हूँ, मैं कहानी हूँ।
मैं वृद्ध हूँ, मैं जवानी हूँ।
मैं चिता हूँ, मैं शमसान हूँ,
मैं आरम्भ हूँ, मैं अवसान हूँ।
मैं दर्द हूँ, उपचार भी हूँ,
मैं वास्तव हूँ, विचार भी हूँ।
मैं ही गुण, मैं ही निर्गुण,
मैं नवदीक्षित मैं निपुण,
मैं हर्ष हूँ मैं क्षोभ भी हूँ,
मैं मृत्यु हूँ मैं मोक्ष भी हूँ।
मैं तंत्र हूँ, मैं इकाई भी,
मैं अकेला, मैं निकाय भी,
मैं चार वेद, सर्व पुराण हूँ मैं,
सप्त चक्र और निर्वाण हूं मैं,
मैं त्वम हूँ, मैं स्वयं हूँ,
मैं परम सत्य, मैं वहम हूँ।
