मैं व्यथा का कवि हूँ
मैं व्यथा का कवि हूँ
मैं व्यथा का कवि हूँ,
मेरी सोच में चिंतन है,
चिंतन है चित्त के रुग्ण होने की,
रुग्ण मन के क्लेशपूर्ण विचार की,
विचार जो मष्तिष्क में निरंतर बहते हैं,
निरंतर बहना तो नदियों का भी स्वभाव है,
स्वभाव ऐसा क्यों है मनुष्य का,
मनुष्य क्यों नहीं हो पाता किसी का?
