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Pratibha Mahi

Abstract

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Pratibha Mahi

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मैं तुमसे प्यार नहीं करती

मैं तुमसे प्यार नहीं करती

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मैं तुमसे प्यार नहीं करती 

लेकिन इनकार नहीं करती


गुम रहती तेरे ख्वाबों में

पर मैं इक़रार नहीं करती


कहती हूँ अपना हाल-ए-दिल

बस मैं इज़हार नहीं करती


तेरी बज़्म में रहना भाता है

पर ये स्वीकार नही करती


मेरी रग रग *माही* बसता है

उससे तक़रार नहीं करती।



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