मैं तो एक नारी हूँ
मैं तो एक नारी हूँ
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सब कहते मैं बेचारी हूँ
मैं तो खुद-से ही हारी हूँ।
अब क्या ग़म करूँ मैं इनसे,
मैं खुद-की पहचान की मारी हूँ।
मैं तो एक नारी हूँ।।
जन्मी हूँ जो सुंदर इस सृष्टि में
अहंकार-क्रुरता की दृष्टि में।
कभी प्यार मिला, दुत्कार मिला
अपने सपनों से बहिष्कार मिला।
देते हो देवी का नाम मुझे
फिर भी करते हो बदनाम मुझे।
ठहरी जो घर कि लक्ष्मी मैं
तो भी रहती हूँ सहमी सी मैं।
अब सहम कर ना जीना मुझे
खुद के खातिर है लड़ना मुझे।
डर का मुझ-पर वार हुआ
डर से मुझको प्यार हुआ।
जो लड़ना मैंने शुरु किया
अपनों को खुद से दूर किया।
इन दूरियों को अब क्या गिनु मैं
इन दूरियों से हूँ जो बनी मैं।
इन्हीं दूरियों ने पहचान दिया
जो था मेरा वो सम्मान दिया।
अब और नहीं कहना मुझे
खुद-में है रहना मुझे।
इसी माटी में दफ्न हो जाऊंगी
शुरु से खत्म हो जाऊंगी।
मैं खुश हूँ यह कहते हुए, कि
मैं तो एक नारी हूँ।।