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Sanjay Kapila

Inspirational

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Sanjay Kapila

Inspirational

गुपचुप चांदनी

गुपचुप चांदनी

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हाँ मैं चुप हूँ ... ऐसा नहीं है कि कहने को कुछ नहीं है

लेकिन इस भीड़ में कोई अपना दिखता नहीं ... इसलिए चुप हूँ

दिल में मेरे भी उठती आवाज़ है ...सांझा करने को कई राज़ हैं

पररररररर मैं चुप हूँ...

मन में तुमसे कहने को कई अरमान हैं...दिल में उठते बातों के कई तूफ़ान हैं...

पर मैं चुप हूँ...

ना शब्दों का अभाव है..... ना चुप रहना मेरा स्वभाव है ....

पर मैं चुप हूँ...

लगता है कभी कभी.... लोगों से दिल की अपने मैं कहूँ ...

फिर लगता है यूँ ही खामोश चुप रहूं...

साथी आज कोई साथ नहीं है ... किसी दोस्त का हाथ आज मेरे हाथ में नहीं है ..

इसलिए चुप हूँ चुप हूँ और बिलकुल चुप हूँ...

पर दिन फिर वो आएंगे , जब हम फिर मुसुकुरायेंगे...

आज अँधेरा घना है तो क्या , आज सूरज छिपा है तो क्या... 

बादल एक दिन फिर छंट जायेंगे , फिर हम मुस्कुरायेंगे...

फिर से अपनों का साथ होगा , प्यार भरा सपना अपना होगा... 

तब दिल की अपने मैं कहूँगी, तब यूँ ना मैं मौन रहूंगी...

हर बात फिर जुबां पे आएगी मेरी सोच शब्दों में ढल जाएगी...

दोस्तों में तब मैं कहकहे लगाऊँगी...

अपनी हर सोच मैं बिन सोचे सबसे बताऊँगी...

पर तब तक के लिए मैं चुप हूँ...

हाँ मैं चुप हूँ चुप हूँ चुप हूँ।



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