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अजय एहसास

Inspirational

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अजय एहसास

Inspirational

मैं कुछ कहता हूँ

मैं कुछ कहता हूँ

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अंधियारी रातों में सूने मन से मैं कुछ कहता हूँ,

सोच सोचकर मन ही मन के भावों में मैं बहता हूँ!

सोचूँ कल भी सुबह-सुबह वह छोटा बच्चा रोयेगा,

सोचूँ कल भी युवा वर्ग ये कब तक यूँ ही सोयेगा,

सोचूँ कब तक घर का बूढ़ा बाहर यूँ ही खांसेगा।

मन के ऐसे भावों से हरदम घबराता रहता हूँ,

अंधियारी रातों में सूने मन से मैं कुछ कहता हूँ,

सोच सोचकर मन ही मन के भावों में मैं बहता हूँ!


शाम हुई वो छोटा बच्चा तोड़े जीर्ण खिलौने को,

नौजवान की चिन्ता कैसे पाले अपने सलोने को,

बूढ़ा राम नाम ले करके उल्टे स्वयं बिछौने को,

जीर्ण-क्षीण दीवारों-सा मैं रोज-रोज ही ढहता हूँ,

अंधियारी रातों में सूने मन से मैं कुछ कहता हूँ,

सोच सोचकर मन ही मन के भावों में मैं बहता हूँ!

रात हुई बच्चे के ख्वाबों में कुछ परियाँ आतीं हैं,

नौजवान तो टहल रहा है नींद न उसको आती है,

बूढ़ा सोचे दुख की रातें भी क्यूँ कट न जाती हैं,

नींद नहीं आती है अन्तर में कष्टों को सहता हूँ,

अंधियारी रातों में सूने मन से मैं कुछ कहता हूँ,

सोच सोचकर मन ही मन के भावों में मैं बहता हूँ!


कब होगा जब बच्चा खुद हँसता विद्यालय जायेगा,

नौजवान मिष्ठान लिये माँ के चरणों में आयेगा,

कब होगा बूढ़ा न खांसे बल्कि वो खिलखिलायेगा,

आखिर कब ऐसा होगा मैं चिन्तन करता रहता हूँ,

अंधियारी रातों में सूने मन से मैं कुछ कहता हूँ,

सोच सोचकर मन ही मन के भावों में मैं बहता हूँ!


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