मैं हूॅं चिड़ियाॅं
मैं हूॅं चिड़ियाॅं
मैं हूॅं चिड़ियाॅं,
भावनाओं की पुड़ियाॅं,
खोलकर देखो मेरे अंदर,
पाओगे परेशानियों का समंदर।
ये परेशानियाॅं है मानव की देन,
छिन लिया उसने मुझसे मेरा सुख चैन,
उड रही थी मैं आसमान में बडे मजे से,
चली गई मेरी जान मोबाइल के
सिगनल की वजह से।
पेड़ पर बनाया था मैनें मेरा सुंदर सा घर,
काट कर उसें बनाया गया मानव के लिए शहर,
क्या बिगाड़ा था मैनें उनका,
जो छिन लिया उन्होनें मेरे मुॅंह का तिनका।
मैं हूँ चिड़ियाॅं,
मेरा सिर्फ यही है सभी मनुष्यों से कहना,
कि बख्श दो मुझें,
मुझें भी हैं चैन से रहना।
