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Rafique Manzer

Abstract

3.6  

Rafique Manzer

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मैं हिन्दी हूँ

मैं हिन्दी हूँ

2 mins
370


मन के मानसरोवर भीतर कैसे कैसे पिघली हूँ,

मैं हिंदी हूँ मैं हिन्दी हूँ,मैं गंगा बनकर निकली हूँ

मुझमे कितनी धारायें हैं, जो प्रवाह मुझमे बनाती हैं

मुझमे घुलमिल जाती हैं और मेरी वो हो जाती हैं


शब्दों के खेल दिखाती हूं मैं बनकर एक मदारी सी,

मैं असगर सी यशपाल सी,निर्मल वर्मा, भंडारी सी,

भगवती चरण हजारी सी, नागर सुभद्रा कुमारी सी,

मुझमे शौर्य वातसल्य और ममता के बिम्ब अनोखे हैं.


प्रेम प्यार की तपन हैं मुझमे स्नेह के शीतल झोंके हैं,

मैं खुसरो, रहीम, तुलसी, कबीरा, मीरा बनकर गाती हूँ.

जीवन की कड़वी बातों को मुँह पर ही कह जाती हूँ,

मैं सूरदास सी रसखान सी, जायसी, रेदास, बिहारी सी,


मुझमे थोड़ा खोकर देखो भाषा  हूँ मैं  प्यारी  सी

मैं भारतेन्दु मैं मुक्तिबौद्ध, सुमन, प्रसाद, निराला सी,

मैं प्रकृति के पंत सी मैं बच्चन की मधुशाला सी,

अलबेले भाषा रेवाड़ मे, मैं हूँ श्याम ग्वाला सी,


मैं रात मैं चंदा जैसी हूँ, मैं दिनकर और उजाला सी,

मैं माखनलाल मैं महादेवी मैं हूँ भीष्म साहनी सी,

मैं प्रेमचंद की कलम से लिख्खी सुन्दर एक कहानी सी,

मैं कवि सुजान, मैं चक्रधर, मैं विजयदान की वाणी सी.


प्रेम प्यार से मुझको देखो भाषा हूँ, पहचानी सी,

मेरे आँचल में अज्ञेय, नईम, नीरज, अटल से तारे हैं.

नागार्जुन, राहुल, रेणु से एक नहीं कई सारे हैं.

मैं उधभ्रारंत, दुष्यंत, शमशेर के विश्वास का आलोक लिए


मैं हरिओध,मैं नामवर के रंगों का सवपन्न लोक लिए

इसीलिए तो अभीमान से मैं इतनी मुस्काती हूँ.

प्रेम प्यार का बंधुत्व का, मैं नारा लगवती हूँ.

भारत के माथे के ऊपर सजी हुई एक बिंदी हूँ, मैं हिन्दी हूँ!




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