मैं एक नारी हूंँ
मैं एक नारी हूंँ
मैं नारी हूं
सदियों से पूज्य रही हूँ
कन्या रूपेण , मातृ रूपेण
सीता भी मैं हूँ , राधा भी मैं हूं
द्रौपदी और गांधारी भी मैं हूँ
मैं नारी हूँ!
कभी बेटी तो कभी बहन
कभी प्रेमिका तो कभी पत्नी
मैं ही मां भी हूँ
जीवन में पल पल रूप बदलते रहे
पर रहती तो नारी ही हूँ
मैं नारी हूँ!
सदियों से कर्तव्यों की
बेड़ियों से जकड़ी रहती हूँ
अपने अधिकारों के लिये
आजीवन संघर्ष करती रहती
मैं नारी हूँ!
पराई अमानत हो
अपने घर में अपने मन का करना
ससुराल में बहू हो ... बहू की तरह रहो
अपने अस्तित्व के लिये
लड़ती रही झगड़ती रही
मै नारी हूँ
मैं कोमलांगी हूँ रूपसी हूँ
मैं प्रेमिका हूँ ,अर्धांगिनी हूँ
मैं डाक्टर हूँ इंजीनियर हूँ
मैं वैज्ञानिक हूँ , मैं पायलट हूँ
मैं फौज में मेजर भी हूँ
मैं क्या नहीं हूँ , और कहां नहीं हूँ
मैं नारी हूँ!
मैं जीवन की धुरी हूँ
पृथ्वी जैसे अपनी धुरी पर घूमती
परिवार , समाज , देश और दुनिया
नारी के इर्द गिर्द ही घूमती रहती
मैं नारी हूँ!
इसलिये शोषित भी होती रहती हूँ
क्योंकि लोगों की नजरों में
जोरदार माल हूँ’, ‘क्या मस्त चीज है’
कोई अपनी आंखों से घूर घूर कर रस लेता है
कोई यहां वहां स्पर्श कर परम सुख पाता है
कोई मुझे मसल कर रौंद कर सुख पाता है
अर्थात् यूज ऐंड थ्रो भी हूँ
पुरुषों की नजरों में मैं भोग्या हूँ
मैं नारी हूँ!
टिड्डी दलों की तरह चारों तरफ
झुंड के झुंड घूम रहे मनचले
नौकरी की लालच दिखला कर
रंग बिरंगे जीवन के सपने दिखला कर
केरियर के सतरंगी ख्वाबों को दिखला कर
अपने डंक मारने को बेताब
मैं नारी हूँ!
हर कदम पर ऐसे सर्पों
से दुनिया अटी पड़ी
जो अपने जहरीले विष से
नारी के अस्तित्व और अस्मत को
नकार कर तार तार कर लूटना
अपना हक समझते हैं
मैं नारी हूँ!
अब इक्कीसवीं सदी है.....
आधुनिकता की आपाधापी में
आगे बढने की मारामारी में
पल पल नारी अपना रूप बदल रही
अब यह कोमलांगी नहीं वरन्
बदले की आग में झुलस रही
मैं नारी हूँ!
कंगना बन कर गरज रही
तो रिया बन कर
षणयंत्र भी रच रही
मैं नारी हूँ!
सच तो यह है कि
नारी तो सब पर भारी है
नारी के बढते कदम
और बदले रूप को देख
समूचा विश्व हो रहा
कंपित और अचंभित
और मजबूरी वश
नारी का लोहा
मान रहा
मैं नारी हूँ!!