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Mehak Kapoor

Abstract

3.5  

Mehak Kapoor

Abstract

मैं एक नारी हूँ

मैं एक नारी हूँ

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अपने हाथों में पकड़ी कलम से

अपनी जिंदगी का पैगाम लिख रही हूँ 

मैं लड़की हूँ जनाब इसलिए ही 

आज समाज में छिप रही हूँ ।।


सब कहते हैं पढ़ाई छोड़ दो

ससुराल में जाकर तो काम ही करना है

कोई ये क्यों नहीं कहता 

पढ़ाई करो पढ़ लिखकर रोशन तो

माँ बाप का नाम ही करना है ।।


क्यों एक लड़की के कपड़ो पर ऊँगली उठाते हो

क्यों उनकी ज़िंदगी पर रोक लगाते हो

अरे अपने बेटो को क्यूँ नहीं

उनकी इज्ज़त करना सिखाते हो।।


क्यूँ एक लड़की के पहरावे पर सवाल उठाते हो

अरे अपने बेटे की गल्तियों पर

पर्दा डालकर उनका हौंसला क्यूँ बढ़ाते हो।


क्यों एक लड़की को ठहराव से जीना सिखाते हो

अरे अपने बेटे की घटिया सोच में क्यों नहीं बदलाव लाते हो।।


माँ बाप के दुख का सहारा होती है बेटियाँ 

फिर क्यों बेटे की चाह में मार देते हो बेटियों को।


क्यों फर्क़ करते हो बेटे और बेटियों में

क्यों बेटा नहीं बनाते हो बेटियों को।।


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