" मैं और तुम "
" मैं और तुम "
मैं ढलते सूरज सा शांत,
तुम पूरे चाँद का वो शोर,
मैं टूटा सा इक मोती,
तुम मोतियों को बांधो वो डोर।
मैं तालाब का ठहरा पानी,
तुम बहती हुई नदी की शोर,
मैं खुदमें कहीं गुमशदा सा,
तुम गुमनामी में भी हो हर ओर ।।
तुम महलों की खूबसूरत परी,
मैं ठहरा एक नाकामयाब सा चोर,
तुम मदमस्त सी मोरनी,
और मैं बारिश देख नाचनेवाला मोर।।।
मैं खुद से ठुकराया हुआ सा,
तुम बहती लहरों का हो ठोर
मैं नाउम्मीदी से भरा हुआ,
तुम अंधेरों को मिटानेवाली एक भोर।।।।