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Viha Oza

Abstract

5.0  

Viha Oza

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माता-पिता की छाँव

माता-पिता की छाँव

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माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद भूखे रहकर भी बच्चों को खिलाते हैं,

चाहे हो सर्दी, गर्मी या हो क्यूँ न बारिश,

वो हर वक्त अपनों के बारे में सोचते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद गीलें में रहकर भी बच्चों को सूखे में सुलाते हैं।

चाहे हो कोई भी परेशानी,

वो हर वक्त उनकी चिंता करते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद दुःखी हो कर भी बच्चों को खुश रखते हैं।

चाहे हो कोई गम-गिला,

वो हर वक्त उनकी सलामती करते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद अपने सपने छोड़कर

बच्चों के सपने पूरे करते हैं।

चाहे हो भी अमीरी या हो क्यूँ न गरीबी,

वो हर वक्त उनकी बलाएँ लेते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद हो जख्म कितने भी

बच्चों को सुकून में रखते हैं।

चाहे हो कितने भी शिकवे,

वो हर वक्त दुआएँ देते हैं।


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