माता-पिता की छाँव
माता-पिता की छाँव
माता-पिता घर की छाँव होते हैं,
खुद भूखे रहकर भी बच्चों को खिलाते हैं,
चाहे हो सर्दी, गर्मी या हो क्यूँ न बारिश,
वो हर वक्त अपनों के बारे में सोचते हैं।
माता-पिता घर की छाँव होते हैं,
खुद गीलें में रहकर भी बच्चों को सूखे में सुलाते हैं।
चाहे हो कोई भी परेशानी,
वो हर वक्त उनकी चिंता करते हैं।
माता-पिता घर की छाँव होते हैं,
खुद दुःखी हो कर भी बच्चों को खुश रखते हैं।
चाहे हो कोई गम-गिला,
वो हर वक्त उनकी सलामती करते हैं।
माता-पिता घर की छाँव होते हैं,
खुद अपने सपने छोड़कर
बच्चों के सपने पूरे करते हैं।
चाहे हो भी अमीरी या हो क्यूँ न गरीबी,
वो हर वक्त उनकी बलाएँ लेते हैं।
माता-पिता घर की छाँव होते हैं,
खुद हो जख्म कितने भी
बच्चों को सुकून में रखते हैं।
चाहे हो कितने भी शिकवे,
वो हर वक्त दुआएँ देते हैं।