STORYMIRROR

Viha Oza

Abstract

3  

Viha Oza

Abstract

माता-पिता की छाँव

माता-पिता की छाँव

1 min
291

माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद भूखे रहकर भी बच्चों को खिलाते हैं,

चाहे हो सर्दी, गर्मी या हो क्यूँ न बारिश,

वो हर वक्त अपनों के बारे में सोचते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद गीलें में रहकर भी बच्चों को सूखे में सुलाते हैं।

चाहे हो कोई भी परेशानी,

वो हर वक्त उनकी चिंता करते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद दुःखी हो कर भी बच्चों को खुश रखते हैं।

चाहे हो कोई गम-गिला,

वो हर वक्त उनकी सलामती करते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद अपने सपने छोड़कर

बच्चों के सपने पूरे करते हैं।

चाहे हो भी अमीरी या हो क्यूँ न गरीबी,

वो हर वक्त उनकी बलाएँ लेते हैं।


माता-पिता घर की छाँव होते हैं,

खुद हो जख्म कितने भी

बच्चों को सुकून में रखते हैं।

चाहे हो कितने भी शिकवे,

वो हर वक्त दुआएँ देते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract