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Atul Kast

Abstract

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Atul Kast

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मां

मां

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मां ही अंबा, मां ही दुर्गा, मां भवानी वसुंधरा है,

मां ही शक्ति,मां ही भक्ति,ईश्वर का रूप दूसरा है।

मां ही तो है अस्तित्व जगत की ,तेरी मेरी पूजा है,

मां ही तो बस है अपनी शेष जगत सभी दूजा है।

खुद खाया नहीं पूरा खिलाया,सूखे में तुझे था सुलाया,

ताने सह कर भी प्यारे लाड़ ही लाड़ सिर्फ लाड़ लड़ाया।

दान- पुण्य धर्म ध्यान सभी तुझमें ही जाना और जताया।

फिर भी भूख में छोड़ा इसको भोग - छप्पन तूने कैसे पाया।

भूल गया क्यों नींद ना रातों बातों में तेरी दिन काटे,

पल पल तेरे संग रोंना हंसना सुख दुःख भी तेरे संग बांटे,

ऐसा क्या निर्लज्ज हुआ तू अब बोलना भी इसका काटे,

मिन्नतें मांगी थी जिसने दर दर रोटी के उसको है फांके।

कर ले चाहे लाख जतन दुलार ना ऐसा मिल पाएगा,

स्वार्थ की दुनियां स्वार्थी बंदे स्वार्थ ही स्वार्थ पाएगा।

झूठे है सभी जग के नाते कुछ देगा जब ही पाएगा,

और सभी मिल जाएं अविरल* मां का आंचल ना पाएगा।



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