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माँ का रिश्ता प्रकृति में दिखाई देता है...

माँ का रिश्ता प्रकृति में दिखाई देता है...

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माँ को मैं देखती हूँ
उस गाय में जो
अपने बछड़े को जीभ से चाटती है
जब वो उसका दूध पी रहा होता है
वात्सल्य से भरी माँ और वो बछड़ा

माँ को मैं देखती हूँ
अपने खूब सारे पिल्लों को दूध पिलाते हुए उस कुतिया में
जो थोड़ा सा नकली भौंक कर पिल्लों को अपने से हटाते हुए
निकल जाती है रोटी के टूकङों की तलाश में
जिससे बच्चों का दूध फिर तैयार हो सके

माँ को मैं देखती हूँ
उस चिड़िया में जो अपने चूज़े को दाना चुगाती है और फिर
उसे सीखाती है उड़ना

माँ को देखती हूँ
उस खूँखार सी दिखने वाली बिल्ली में
जो आहिस्ता से मुँह में अपने बच्चे को दबाकर ले जाती है
सात घर घूमाने की रस्म पूरी करने के लिए

माँ को मैं देखती हूँ
सड़क किनारे उस भिखारिन में
जो अपने कोख़ में बच्चा लिए हुए
कभी अपनी फटी साङी के पल्लू से उस बच्चे की बहती नाक को पोंछती है तो
कभी अपने पल्लू में ठंड और गर्मी से उसे बचाती है

जहाँ देखों वहाँ मुझे माँ दिखाई देती है

जब मैं अपनी बेटी को पढ़ाती हूँ, खिलाती हूँ, सुलाती हूँ
मुझमें भी
बस माँ ही माँ दिखाई देती है
माँ तत्व है जो चहुँ ओर व्याप्त है
इसीलिए वो ईश्वरीय है


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