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Babita patil

Abstract

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Babita patil

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लाड़ला

लाड़ला

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लिखी अनगिनत कविताएं मुझ पर मां

कुछ अधुरा सा ही में

नहीं मालूम क्या ग़लती मेरी

हर कहानी बुरा बना हूं में

बचपना मेरा भी तेरी 

गोद में बीता


फिर तुने मुझे क्यों पराया किया 

वो रसोई तेरी थी मां

तुम ही लाई थी उसको

मुझे दुध पीला छाती का 

खुद से दुर किया था मां

मैं तो नहीं था ना तेरे

आंगन में थी वो जिसे तू लाई थी


में तो थकान से चूर था मां

क्या हुआ तुम दोनों में

मुझे क्या पता था मां

किस का में पक्ष लेता

बुरी तरह फंसा था मां 

तू है जरूरी मेरे लिए

तेरे बिना एक पल ना 

रह पाऊंगा


पर उसको भी छोड़ूं कैसे

जो बिना मेरे बिना खा भी नहीं सकती मां

तुम कहती बदल गया है अब

बदला भी तुने है मां

कहती थी लाड़ला है मेरा

अब तेरी नज़र में क्या हूँ मां


मेरी हर चीज को तुने

सौंप दिया उसके हाथ

और कहती हैं

उसके हाथ का कठपुतला हूँ

कठपुतला नहीं तेरे ही लाड़ला हूँ आज।


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