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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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कलम उठाई स्याही ने

कलम उठाई स्याही ने

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कलम उठाई है स्याही ने

शब्दों की आड़ी तिरछी रेखाएं खींची हमने,

अंतर्मन के भावों ने जैसे

पूरे कर दिए जैसे हमारे सपने।

मन के भाव कागज के पन्नों पर उतरते जा रहे हैं

क्या बताऊं कैसे ये सब पन्नों पर शब्द बनते जा रहे हैं।

अब तो मन के भावों को

मैं भी शब्दों में पिरोने लगा हूं,

लोग कहने लगे हैं मुझे

अब मैं कवि लेखक हो गया हूं।

पता नहीं सच क्या है?

ये तो मुझे पता नहीं लेकिन

पर शायद मैं सचमुच कुछ नया करने लगा हूं।

कवि लेखक क्या होता है?

ये तो आप सब ही जानो 

पर आजकल मैं भी कागज के पन्ने रंगने लगा हूं

मन के भावों को शब्दों में गढ़कर

कागज़ों पर उतारने लगा हूं,

जब से कलम उठाई है स्याही ने

मैं इतना तो नया काम करने लगा हूं

नित नए शब्दों को आपस में पिरोने लगा हूं

शायद आप सब सही कहते हैं

कवि लेखक बनने की दिशा में

अब मैं भी आगे बढ़ने लगा हूं। 



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