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Sachidananda Behera

Abstract Action Inspirational

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Sachidananda Behera

Abstract Action Inspirational

*_किसान_*

*_किसान_*

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रोता तो हरकोई है

लेकिन हस्ता सिर्फ समझदार लोग,

खाना तो हरकोई खताहे 

लेकिन मजदूर जाने पेट का भोंक।।1


 खेतोंमें हरपाल काम करके

मिटिसे सोना उबलता है,

बेल की तरहा काम करके

रोज हमे खाना खिलता है।।2


उसकी भी परिवार है

लेकिन वो सारी दुनिया का सोचता है,

जिंदगी उसके भी है

लेकिन वो हमें जीना सिखाता है।3


सालभर काम ही काम

फिरजाके आता है खाना,

वो रोज जहर पीके

हमारी जिंदगी में लताहे सबेरा सुहाना।4


सुबह से शाम तक सिर्फ 

अपने खेतों में समय गुजारता है,

फिर जाके रात को 

अपनी घर को लौट कर 

अपनी छोटी सी बिस्तरों में सोजता है।।5


रोते रोए भी वो हमेसा

खुसी क्या हमेसा जाना है,

इसीलिए में हमेसा कहता हु

ये किसान महान है।

ये किसान महान है।6


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