ख्वाहिश
ख्वाहिश
कितनी बार खुद को शब्द याद कराये थे हमने
न जाने क्यूं तुझसे बोल ना पाये
ऐसा नहीं कि ना सुनने की आदत नहीं है
पर फिर भी तेरी ना से टूट जाने का डर लगता है ।
हम यूं ही तो तुझे सब बोल ले पर
अहसास किया है हमने
जरूरत के वक्त तू पास नहीं होता ।
तेरी जरूरत भी हो तो कैसे कहूं तुझसे
मुझे खुलने का मौका तूने दिया ही नहीं
तेरी ये बाते मुझे मारती सी जा रही है ।