ख़ूबसूरत सनम...
ख़ूबसूरत सनम...
दो अल्फाज मै भी वतन के बारे मे बचपन में सुना करती थी और
उन शहीदों को महसूस करके मेरी भी आखे आसुओ के बूंदों से भर जाती थी ।
इतिहास के कुछ पन्ने पलटाकर खुद से खुद में हौसला बढ़ाया करती थी
और मन में एक आंधी आया करती थी।
वो वतन जिसका आज भी अगर तिरंगा देखूं ना तो आसमां को भी आसमां दिखाई देता ।
पता नहीं क्यों? यह वतन का बेपनाह इश्क हर बार मन ही मन तड़पाता है
कुछ ना कुछ करने जाओ तो किसी मजबूरी में डाल देता है
तो फिर भी वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता है।
