कहानी सुनाता रहा
कहानी सुनाता रहा
रदीफ़ : रहा
काफिया : आता
मापनी : 212 212 212 212
जिंदगी की कहानी सुनाता रहा
दर्द दिल के सभी मैं छिपाता रहा
प्यार था के नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर
मुसकुरा कर निगाहें चुराता रहा
तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा
आईना कांच में मैं बनाता रहा
इस बिदाई का अब सिलसिला कुछ न हो
अजनबी ज़िन्दगी भर रुलाता रहा
मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर
हर कमाई उन्हीं पर लुटाता रहा
जीतकर जो मुझे हारता ही रहा
हारकर भी उसे मैं जिताता रहा
तू बताना “निधी” मैं गलत तो नहीं
मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा।