अब्बू और होली
अब्बू और होली
आज मैं पच्चीस साल की हो चुकी हूं,
यह तस्वीर तब की है जब महज़ आठ साल की थी,
छोटे छोटे बाल थे मेरे,
ज्यादा कुछ उस वक्त का याद भी नहीं अब,
पर कभी कभी लगता है की काश याद होता!
किसी ने बहुत सही कहा है,
यादाश्त बहुत ही अजीब खूबी है हम मानवो की,
कुछ बातें जिनको भूलना चाहो वो भुलाए नहीं भूलती,
और जिनको याद करना चाहो वो याद ही नहीं आती!
उस वक्त की सिर्फ इतनी सी बात याद है मुझे,
होली का दिन था वो और मैं रंगो में रंगबिरंगी लग रही थी,
अरे यह में नहीं कहती हूं,
आज भी मेरे अब्बा हर होली पर मुझे यही कहते हैं
की तु रंगबिरंगी लग रही है नूरी!
और अम्मी को हर होली पर कहते हैं
तुम पर हर रंग अच्छा लगता है,
सारे लगा कर देख लो, इतना कहकर वो जोर से हँसते हैं,
और अम्मी कुछ बोले उसे पहले ही हर रंग लगा कर रंग खत्म कर देते हैं,
उन्हें न तो कोई रंग लगाता है न वो मां और मेरे सिवा किसी और को।
इस तस्वीर में एक खास बात है, अम्मी ने कल बताई थी,
कहती हैं यह मेरी पहली होली थी,
मेरे छोटे छोटे बाल भीगे भीगे थे,
मैं भागकर घर से दोस्तों के साथ और होली खेलना चाहती थी,
सामने वाले डॉगी को भी रंग लगाकर उसकी पूछ खींचनी थी मुझे!
मगर अब और नहीं घर से मेरे बुलावा आ गया था।
जब मैने अब्बु की दी गई सफ़ेद फ्रॉक को पहना तो गीले बालों में मुझे देखकर अब्बू कह दिए अम्मी से,
चांदनी तुम बिलकुल ऐसी ही हस्ती थी ना बचपन में!
तो अम्मी ने कहा बचपन तो याद नहीं पर आपको भी शाम के दूध में शक्कर ज्यादा पसंद शुरू से थी क्या?
अब्बू फिर बोले की नूरी उनकी सबसे प्यारी है!
और अम्मी मुस्कुराकर ज्यादा शक्कर वाले दूध के दो ग्लास मेज पर रख चली गई,
क्योंकि मुझे भी बहुत पसंद है।
अब्बू ने उस दिन अम्मी से कहा
जब नूरी हस्ती है तो मुझे वो बचपन का दिन याद आता है,
जब पहली बार मैंने तुम्हे होली के दिन देखा था,
बैंगनी रंग के तुम्हारे बाल,
गुलाबी रंग का तुम्हारा चेहरा
और हरे रंग के तुम्हारे हाथ,
इन पर तो जैसे मानो चार चांद की चांदनी चमक गई,
जब मुस्कुराते हुए तुम मुझसे टकराई थी,
और फिर खिलखिलाते हुए भागी थी वहां से।
यूं तो मुझे सफेद रंग और सफेद शक्कर देते हुए ही तुम जान गई थी,
की सफेद मुझे सबसे ज्यादा पसंद है,
मगर तुम पर तो मुझे सारे रंग खूबसूरत से लगते हैं।
अम्मी को उस दिन शायद मालूम हुआ था की होली अब्बू को रंगों की नहीं,
चांदनी की याद लाती है,
मेरी अम्मी चांदनी!
आज अब्बू के साथ मैने वापिस से दूध में ज्यादा शक्कर डालकर पिया,
क्यों आज खजूर का डिब्बा भरा हुआ है?
मैने पूछा,
हर बार तो खजूर रमजान के महीने आता है न?
हर इफ्तार तेरी याद लाता है नूरी,
तेरी जिद को याद कर ही हम मुस्कुरा लेते हैं,
हमारा रमज़ान सिर्फ तेरी ही याद लाता है अब।
अब्बू के आंसू आ परे,
यह सुनकर अम्मी ने कहा,
आपका इतर ही तो हमें लुभाता है,
मैने सुना था जब नूरी ने आफताब से कहा था,
की गुलाब का वो खास इतर सिर्फ अब्बू का है,
तुम कुछ और ले आओ अपने लिए।
अब्बू की नजर अम्मी पर आई,
अक्सर बच्चे इस वक्त आंखें बंद कर देते है अपनी,
मोहब्बत बच्चो की चीज जो नहीं!
खैर उम्र दराज भी मोहब्बत में माहिर कहां जनाब!
फिर उस दिन न तो मैं आंखें बंद की और ना तो कमरा,
मैं तो सिर्फ इमरोज़ और चांदनी को देखती रह गई,
अम्मी अब्बू नहीं है वो मेरे सिर्फ,
उन्हें देखकर ही तो मुझे मन करता है की परियों की कहानी में पढ़ा प्यार काश सच हो जाए।
किसी को टूटकर भी प्यार किया जा सकता है यह यकीन है यह दोनो मेरे,
सोचती हूं कभी कभी,
की कैसी होगी ना वो शाम,
जब मेरे अब्बू ने शाम का दूध नही बल्कि नानी की हाथ की चाय पी थी,
और नानू से कहा था,
की चांदनी पर उन्हें हर रंग इतना पसंद है,
की वो उसे हर होली खेलने देंगे,
आयतों में वो हर बार उन्हीं के लिए दुआ मांगेगे,
सिर्फ इतना चाहते हैं वो की,
हर होली पर अपनी बेगम चांदनी को सबसे पहला रंग वो लगाए,
उनको शाम को शक्कर वाला दूध बिना भूले दिया जाए,
उनके बच्चे को घर में सब प्यार से नूरी बुलाए
और हर बिस्मिल्ला खजूर से ही शुरू हो जाए।
इतनी सी ख्वाइश थी उनकी सिर्फ,
और अम्मी ने कहा की
आप गुलाब का इतर ही सिर्फ लेते हैं?
दोनो इस कदर मुस्कुराए होंगे शायद,
की नानू और अब्बा हुजूर भी मोहब्बत को न कहने की गुस्ताखी कैसे कर पाएंगे।
और इसी तस्वीर को देख अम्मी ने मुझे कहा की तुम्हारे भीगे बालों में बिलकुल वही मासूमियत का नूर था,
जो मैंने अपनी आंखो में उस होली पर देखा था,
उनकी इतर की वजह से जो था।
