खामोशियाँ
खामोशियाँ


चारो ओर फैली गहरी लंबी खामोशियाँ
मन में विचारों के तूफान उठाती खामोशियाँ
जिंदगी क्या है क्यों है उसकी मंजिल क्या है
कामयाबी की अंधी दौड से लगता है, एक अंतहीन मृगतृष्णा है
और, थोडा और पाने की चाह से लगता है,
एक अनबुझी प्यास है
आखिर कैसे आ पहुँची जिंदगी इस पड़ाव पर ?
घबरा मत ऐ दोस्त मेरे,
कुछ वक्त बचा है अभी भी..
चल लौटा लें इसे उस पुराने मोड पर
उस मासूम हँसी, उन खिलखिलाते पलों को जी लें एक बार दोबारा
कि खामोशियाँ भी कह उठें, किससे पाला पड़ा था हमारा।