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Rishabh Jaiswal

Abstract

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Rishabh Jaiswal

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ज़िन्दगी एक सफ़र।

ज़िन्दगी एक सफ़र।

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खफा है ज़िन्दगी मेरी कुछ ऐसी कायनात है..

ना मर सका हूँ मैं ,ना जीने की कोई आस है।


कहानियां पढ़ी बहुत पर ऐसी देखी ना कभी..

खुदा से रोज़ में कहूं ,किसी को देना ना कहीं।

वो रोज़ देखता है मेरी ज़िन्दगी की हाट को..

किया कभी ना कुछ बस कुरेदेता हालात को।


लगता मुझे भरोसा है उसे मेरे विश्वास पे..

बुलंद हौसलों को जोड़ रखा आसमान पे।

कह गए थे स्वामी राम, ऐसा युग आयेगा..

चुगेगा हंस दाना, बेटा देखता रह जाएगा।


कर जाऊं कुछ ऐसा, देखेगा समाज तेरा ये..

हारा नहीं हूं मैं पर देखा है करीब से।


जज़्बात लिख दिए है कुछ ऐसे आज पात्र पे..

ज़िन्दगी भी देखने में कम नहीं है प्रश्नपत्र से।


जंग लड़ रहा हूं ' खुदकी ' मैं ' खुदसे ' यहीं..

खुदा भी देख के कहे, तू लड़.. खड़ा हूं मैं यहीं।

खुदा भी देख के कहे, तू लड़.. खड़ा हूं मैं यहीं।


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