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Suprabhat Yadav

Abstract

4.1  

Suprabhat Yadav

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जब मै छोटा बच्चा था

जब मै छोटा बच्चा था

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जब मै छोटा बच्चा था,

सुनते ही नाम स्कूल का कभी पेट तो कभी सिर में दर्द हो जाया करता था।

पर वो कहते है न, माँ तो माँ होती है उसके पास हर मर्ज की दवा होती है

खींचती थी जब वो कान मेरे 

सब दर्द दूर हो जाया करता था।


जब मै छोटा बच्चा था। 

पकड़ कर हाथ दीदी का विद्यालय जाया करता था, 

कभी सम्हालता पैंट तो कभी जुराबे सम्हाला करता था, 

क्योंकि मैं छोटा बच्चा था। 


आज शिक्षक दिवस पर माँ ने मेरे बालो में तेल लगाकर,

सजा संवार कर मुझको पढ़ने भेजा था।

मगर मेरा प्यारा चेहरा आज भी काजल से भीगा था।

पर आज कुछ अलग सी बात हुई, 

माँ की कहानियों वाली परी से मुलाकात हुई।

वो प्यारी सी सुंदर मैडम, 

कजरारे नैनों वाली मैडम, 

क्यों रो रहे हो 'सुप्रभात', जब पास मेरे आकर बोली मैडम।

मैं था कांप रहा थर-थर,

शब्द स्पष्ट अभी भी निकलते नहीं थे उसपर

तुतला के मैं बोला

दलद बौत तेत ते मेले पेत में आई

मैदम, दलदी ते दाने दो मुधको तू तू है आई, 

हस पड़ी वो खिलखिलाकर लिए आँखों में आंसू ,

मुझमें देख बचपन अपना शायद हो गई थी वो बेकाबू।


चूमकर माथे को मेरे उसने गालों को खीचा, 

 मै भी था शरारती बहुत कर दिया उनको भी गीला।

जब मै छोटा बच्चा था, बहुत शरारत करता था।



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