STORYMIRROR

Mahavir Uttranchali

Abstract

3  

Mahavir Uttranchali

Abstract

जां से बढ़कर

जां से बढ़कर

1 min
273

जां से बढ़कर है आन भारत की

कुल जमा दास्तान भारत की।


सोच ज़िंदा है और ताज़ादम

नौ’जवां है कमान भारत की।


देश का ही नमक मिरे भीतर

बोलता हूँ ज़बान भारत की।


क़द्र करता है सबकी हिन्दोस्तां

पीढ़ियाँ हैं महान भारत की।


सुर्खरू आज तक है दुनिया में

आन-बान और शान भारत की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract