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Kalyani Nanda

Abstract

4.3  

Kalyani Nanda

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इन्तजार की घड़ी

इन्तजार की घड़ी

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ये घड़ी है इन्तजार की,

एक नयी सुबह आएगी,

सूरज की लाली से धरती सजेगी,

ये घड़ी है इन्तजार की।


ये घड़ी है इन्तजार की,

ये राहें अभी है सुनी सुनी,

ना है कोई आवाज गाडी की,

ना सुनाई देती खिलखिलाहट बच्चों की,

ना किसीकी आना जाना,


ना है किसी से मिलना,

बस सभी जुझ रहे हैं, लड़ रहे हैं,

क्यों कि अब तो जंग शुरू हुई है,

सब्र का इम्तहान है, अकेलेपन को झेलना है,

अब तो राज कर रही तन्हाई,

ये घड़ी है इन्तजार की।


ये घड़ी है इन्तजार की,

क्या हुआ जो किसी से गले ना मिल पा रहे हो,

कोई आ नहीं रहा, कोई जा नहीं रहा,

पर सोचो जरा, उन जांबाज सिपाही के बारे में,

जो ना तो घर जा पा रहे हैं,

अपनो से ना मिल पा रहे हैं,

लड़ रहे हैं दिन रात, डर के दुश्मनों से,

कि कहीं वे तुम तक ना आ जाएँ,

सब्र करो मेरे यारो, सब्र का फल मीठा होता है,

इक दिन ये अंधेरा कट जाएगी,

ये घड़ी है इन्तजार की।


ये घड़ी है इन्तजार की,

डर का बादल इक दिन छट जाएगा,

एक नया सवेरा आएगा,

खुशियाँ ढोल बजाएँगे, पंछियों गीत गाएँगे,

आसमान पे फिर से चांद, सितारे चमेकेंगे,

झेल लो अब अकेलेपन को मेरे यारो,

क्यों कि ये घड़ी है इन्तजार की।


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