इन दिनों
इन दिनों
इन दिनों सुबह की शुरुआत चिड़ियों की चहचहाने से होती हे।
आस्मान कुछ साफ़ सा दिखने लगा हे, यूँ की आज नयी दुल्हन का इंतज़ार सा होने लगा हे।
इन दिनों शोर नहीं हे गलियों में ,बस हे तो अपनों के कुछ मीठे बोल।
मा के हाथ की रोटी का स्वाद कुछ ऐसा रंग लाया हे की डर नहीं मुझे परिक्ष्यों से।
इन दिनो, धूप से कुछ एसा नाता जुडा हे की याद नहीं मुझे घडी की टिक टिक करती सूइ।
अब तो बस सुबह शाम मिलने आती हे धूप छाया की अनोखी जुगलबंदी।
इन दिनों दोस्ती का इम्तिहान कुछ ऐसा रहा की ना हुयी मुलाकात पर बुलंद हे रिश्तों का ज़ोर ,
यादों और बातों का सिलसिला कुछ ऐसा चला की बस चलता ही गया।
अब कुछ लड़कपन के दिन याद आते गए और ना जाने कब पुरानी अल्मारी के कुछ ताले खोलने लगे।
इन दिनों कुछ आवाज़ सी सुनने लगे हें हम ,ना कोई हे बाहार,ना दी किसी ने दस्तख्,
ये तो बस अपने अन्तर्मन की आहाट हे।