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Amit Mishra

Abstract

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Amit Mishra

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हम अपनों से होते है...

हम अपनों से होते है...

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थका -थका सा आसमा, शहमा हुआ है ये शहर 

बेखबर से रास्ते, न जाने जाये, किस डगर 


हर पराया अपना लगता, अनजानी सी राहों पर 

वक्त मुखालिफ आज नहीं, ठंडी पडती इन बाहो पर 


दर्द छलकता है आँखों का, छोटी - छोटी अल्फाजो पर

कैद हो रही है जिंदगी, इन जंजीर सी ताजो पर 


कई तराने सिमट गई है, सिरहन सी इन रातों पर 

धधक - धधक दिल जल उठा है, लम्बी - चौड़ी बातों पर 


समय का पहिया बदल रहा है, घड़ी कि अपनी धुरी पर 

वक्त तुम्हारा इतिहास लिखेगा, हमारी ऐसी मज़बूरी पर 


जवाब नहीं दे पाओगे तुम, उठते हुये सवालों पर 

लूट जाओगे सरे-आम तुम, चलती - फिरती राहों पर।


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