STORYMIRROR

हिन्दी

हिन्दी

1 min
902


हिन्दी, हाँ वही जनाब जो सबको अपने

में समाहित करके चलती है।

रखती नहीं है बैर किसी से भी

सबको अपने रंग में ढालती है।


मिल जाती है जिसमें अनगिनत भाषाएँ

सबको जिन्हें अपनेपन से अपनाती है।

रखती नहीं है गैर किसी को तभी तो

अलग इससे कोई भी भाषा इसमें

मिल जाने के बाद नजर नहीं आती है।


यह तो वो महासागर है जिसमें

अनगिनत भाषाओं और बोलियों की

नदियाँ मिलकर बन जाती है एक

कि अलग उससे कभी नहीं जान पड़ती है।


यह तो सभ्यताओं-संस्कृतियों की संवाहक है

हिन्दी ही है वो जनाब जो अनेकता में एकता को

संजोयें सदियों से हर युग में हर परिवर्तन

के साथ तालमेल बिठाये, हर बार नयी रहती है।


Rate this content
Log in

More hindi poem from NEHuLATA garg

Similar hindi poem from Inspirational